रविवार, 15 सितंबर 2013

कानून और दंड

               फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने नववें महीने में जघन्य बलात्कारियों को मौत की सज़ा सुना दी।  न्यायालय की इस निर्णय से जहाँ  जनता में  न्यायालय के प्रति विश्वास और मजबूत  हुआ है वहीँ महिलाओं में भी आत्म विश्वास बढ़ा है।  अधिकतर लोग इस निर्णय का स्वागत किया है परन्तु समाचार पत्र न्यूज चैनेलों के ख़बरों के अनुसार अपने अर्थ हीन  तर्क देकर  कुछ लोग इसे विवादस्पत बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका तर्क है ,"मृत्युदंड भयोत्पादक न होकर एक बदला है जो न्याय के नाम पर लिया जाता है.।  वे लोग यह नहीं बताते कि  यदि  मृत्युदंड समस्या का हल नही है,   तो इस प्रकार के जघन्य अपराध का समाधान क्या है ?शायद उनको भी पता नहीं  हैं। खुद ही भ्रमित है और समाज को भी भ्रमित करना चाहते हैं। 
                     इन लोगों का सबसे बड़ा तर्क यह होता है कि "मृत्युदंड के बाद भी महिलाओं के प्रति अत्याचार या बलात्कार रुका  नहीं और न रुकेगा । इसीलिए मृत्युदंड नहीं देना चाहिए। "
                    उनसे मेरा प्रश्न है ," क्या दुनिया में किसी देश में कोई ऐसा कानून है जो बलात्कार या कोई विशेष अपराध को जड़ से ख़त्म कर दिया या पूरी तरह रोक दिया ?" उनका उत्तर निश्चित रूप से नकारात्मक होगा।
मेरा दूसरा प्रश्न ," यदि नहीं, तो फिर कानून किसलिए बनाए जाते  है ?"
निश्चित  रूप से कानून का  पहला उद्येश्य दंड देना नहीं है वरन लोगो को जागृत करना है कि उन्हें समाज में नियमों के अनुसार किस प्रकार व्यावहार करना चाहिए और यदि वे नियम तोड़े गए तो क्या दंड मिल सकता है। अत; कानून के द्वारा उस अपराध प्रवृत्ति को कम करने की कोशिश की जाती है.। अपराधी में दंड का भय पैदा किया जाता है ताकि वह अपराध करने के पहले कई  बार सोचे। जो व्यक्ति सबकुछ जानबूझ कर कानून का उल्लंघन करता है ,उसे तो दंड मिलना ही चाहिए। इसलिए उनका यह तर्क कि ,"मृत्युदंड से महिलाओं के प्रति हिंसा रुकेगा नहीं।" सही  है क्योकि यह किसी तरीके से रुक नहीं सकती , केवल कानून का भय दिखाकर (दंड देकर ) इसको कम किया जा सकता है। आतंक वादी विरोधी कानून है ,उनको मृत्युदंड भी दिया जाता है फिर भी आतंकवाद पनप रहा है , क्यों ?   इसीलिए मृत्युदंड देना जरुरी है.। इसके बाद भी अगर कम नहीं हुआ तो उसका कारण कनुन के अमल (implementation )में छुपा हुआ है.। उदहारण ;जैसे -यदि एक बलात्कारी पर १० साल से मुकदमा चलता है ,फिर सजा होने पर उसका कार्यन्वयन करने में और पांच साल लगता है तो इस से अपराधियों के मनोबल बढ़ता है और कानून का भय समाप्त हो जाता है.। इसलिए कानून को लागू करने वाले और न्याय करने वाले संस्थायों में सुधार  की जरुरत है.। हर मुकदमा ( case)समयबद्ध और त्वरित होना चाहिए। इस से अपराध करने वालों में भय पैदा होगा। 
                समाचार के अनुसार, National Crime Record Bureau के नवीनतम आकड़ों के अनुसार केवल २०११ में  ११७ लोगो को मृत्युदंड दिया गया है लेकिन किसी को भी अभी तक फाँसी  नहीं दिया गया है.। इस से अपराधियों के मनोबल बढ़ता है और पीड़ित  व्यक्ति और उनके परिवार की पीड़ा और बढ़ती  है। 
                  न्यायालय का हाथ बँधा  हुआ है.। न्यायाधीश को अपने मन ,विवेक को एक तरफ रख कर ,जो कानून कहता  है ,उसी के मुताविक फैसला सुनाना पड़ता है.। यही कारण है कि एक ही अपराध करने वाले पांच व्यक्तियों में से  चार को मृत्युदंड मिलता है और एक को तीन साल की कैद। जुवेनाइल कोर्ट के न्यायाधीश के विवेक को जुवेनाइल कानुनसे घोर संघर्ष करना पडा होगा परन्तु विजय कानून की हुई.। यह कैसा कानून ? कैसा न्याय ?
कौन हैं जिम्मेदार इस तुगलकी कानून का ? निश्चित रूप से कानून के बनाने वाले ही इसका जवाब दे सकते हैं। इसलिए कानून के बनाने वालों  से यह्प्रश्न करना चाहता हूँ कि " १७साल ९  महीने और १८ साल के लड़के में काम क्षमता ,नजरिया, शारीरिक क्षमता ,मानसिक क्षमता ,समझदारी ,भावना इत्यादि (Sex,attitude.physical efficiency , mental efficiency ,understanding,,emotion etc....).में क्या अन्तर है  जिसके आधार पर १८ साल वाले को मृत्युदंड और १७ साल ९ महीने वाले को ३ साल की सज़ा देकर सुधर गृह भेज दिया जाता है? ऐसे क्रूरतम अपराध के लिए न्यायाधीश को  यह अधिकार होना चाहिए कि अपराध के समानुपात में वह दंड दे सके.। 

                मनोवैज्ञानिकों का मत है कि अलग अलग बच्चों का  मानसिक ,शारीरिक ,भावनात्मक विकास अलग अलग समय पर  होता है.। जिस बच्चे में काम वासना उच्चस्तर पर हो,शारीरिक रूप से सम्भोग के काबिल हो ,मानसिक रूप से परिपक्क हो ,जिसमे यह समझ हो कि बलात्कार के सबूतों को मिटा देने पर वह कानून के फंदे से बच जायगा ,ऐसे बालक (मर्द) को  केवल उम्र के आधार पर नाबालिग मान लेना  क्या तर्क संगत   है ? वह तो सभी दृष्टि कोण से एक बालिग़ (बयस्क  ) व्यक्ति है। अत: उसके द्वारा किया गया बलात्कार जुवेनाइल कानून के अंतर्गत नहीं बयस्क कानून के अंतर्गत आना चाहिए और उसे वही दंड मिलना  चाहिए जो बाकी सबको मिला है.। 

              न्यायालय की नज़र में आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता है और न कोई उम्र। आंतंकवादी केवल आतंकवादी होता है.। फिर बलात्कारी के मामले में यह उम्र का बंधन क्यों ? बलात्कारी तो बलात्कारी है.। यदि उम्र को मानना ही है तो उसका सजा योग्य उम्र उस दिन से मान्य  होना चाहिए जिस दिन से वह सम्भोग करने के योग्य हो जाता है.।
               न्यायालय कानून को अनुशरण करता है इसीलिए कानून में परिवर्तन होना अति आवश्यक है। कानून का अमल (implementation )सही ढंग से और जल्दी हो ,न्यायालय समयबद्ध तरीके से  निर्णय सुना दें ,दण्ड की तामिल जल्दी हो ,तभी अपराधियों में भय उत्पन्न होगा और अपराध में कमी आएगी।

कालिपद "प्रसाद "

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

Teachers' Honour Award

Teachers' Honour Award
शिक्षक गौरव पुरस्कार

मित्रों ,
           आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि  मेरी बेटी शर्मिला ,शिक्षा :एम.  ए.(हिन्दी ), एम. ए.(इतिहास ) बी एड, वरिष्ट हिन्दी शिक्षक  के रूप में पुणे  स्थित एक प्रख्यात विद्यालय में कार्य रत है। उसके उत्कृष्ट शिक्षण ,कार्यनिष्ठा ,शिष्ट व्यावहार ,शिक्षक एवम विद्यार्थियों में  लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए ,पुणे महानगरपालिका ने  "शिक्षक दिवस" के अवसर शर्मिला को "शिक्षक गौरव पुरस्कार "  से सम्मानित किया है। आशा है यह उसके जीवन में प्रेरणा स्रोत बनेगा। 

आपका 
कालीपद "प्रसाद "



मेरी बेटी  शर्मीला  मण्डल


                                              मेमेंटो और प्रशस्ति पत्र



बुधवार, 4 सितंबर 2013

सब्सिडी बनाम टैक्स कन्सेसन !



                 सरकार की अघोषित नीति  है कि यदि सरकार एक रूपया जनता के हित में खर्च करती है तो उसका बढ़  चढ़ कर प्रोपेगंडा किया जाय। समाचार पत्र, टी वी न्यूज चैनेल ,रेडियो सब में विज्ञापन  देकर सबको बताया जाय ,चाहे उसमे दस रुपये और खर्च क्यों न हो जाय। इसके विपरीत व्यापार और उद्योग को अरबों रूपया का टैक्स कंसेसन के रूप में फ़ायदा पहुँचाते हैं उसका किसी को कानो कान खबर नहीं होने देते परन्तु उसे दबा देते हैं। वास्तव में सरकार औद्योगित घराने का सेवक है। जनता की याद  तब आती है जब वोट लेना होता है।
                   वित्तमन्त्री हमेशा राजकोषीय घाटा का रोना रोते रहते हैं। इसका दोष यह कहकर जनता पर डाल  देते हैं कि पेट्रोल/डीज़ल /रसोई गैस /खाद्य सामग्री पर  दिया गया सब्सिडी के वजह राजकोषीय घाटा बढ़ता ही जाता है। वित्तमंत्री कभी यह नहीं बताते कि वाणिज्य और उद्योग को दिया गया सब्सिडी के बजह राजकोषीय घाटा बढ़ा है क्योकि उन्हें (efficiency incentive) क्षमता-प्रोत्साहन के नाम से दिया जाता है। सब्सिडी शब्द उनके लिए डिग्निटी से नीचे का शब्द है.लेकिन है वही  ,लिफाफे में बंद कर लेते हैं । इसे चाहे आप सब्सिडी कहे ,टैक्स कन्सेसन कहे या क्षमता-प्रोत्साहन ,हर रूप में यह राजकोषीय घाटा बढाता है।  
                  बर्ष २००५-२००६ से सरकार  टैक्स कंसेसन दे रही है। खबरों के मुताबिक अबतक उद्योग को ३०लाख करोड़ रुपये से ज्यादा टैक्स कन्सेसन दे चुके हैं। केवल चालू वजट में ही वित्तमंत्री ने ५.७ लाख करोड़ का टैक्स कन्सेसन का गिफ्ट उद्योग को दिया है। अगर पिछले तीन साल की बात करें तो  यह अंक करीब १५ लाख करोड़ का है। यदि केवल तीन साल का टैक्स कंसेसन १५ लाख करोड़ रुपये वसूल कर सार्वजनिक  Infrastructure क्षेत्र में लगाया जाता तो  राजकोषीय घाटा समाप्त हो जाता, साथ साथ बहुत लोगो को रोजगार भी मिलती। इस से यही पता लगता है कि  राजकोषीय घाटा के कारण उद्योग को दिया गया टैक्स कांसेसन है, जनता को दिया गया सब्सिडी नहीं। 
                     हाल ही में संसद ने खाद्य सुरक्षा बिल पास किया। अनुमान है कि  इसमें सरकार को ३५ से ४० हजार करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। लोग  पूछ रहे है … ये पैसे आयेंगे कहाँ से ? अगर उद्योग को दिया गया  टैक्स कांसेसन पर नज़र डाले ,जो अबतक ३० लाख करोड़ रुपये है,। इस तुलना में ४० हजार करोड़ बहुत छोटा अंक है , केवल. ०. ०१३४% ऑफ़ ३० लाख करोड़। इस छोटा अमाउंट  को उद्योग से निकालने में वित्तमंत्री को ज्यादा समय नहीं  लगेगा ,यह तो उनका बाँया हाथ का खेल है.। केवल इन्तेजार रहेगा सोनिया गांघी जी के इशारे की.।  सोनिया जी ने मन मोहन से अच्छी तरह गुना भाग करवा कर ही यह बिल आगे बढाया है.।  इस बिल को लाने का उनका कोई भी उद्येश्य रहा हो ,…. २०१४ के इलेक्शन जितने की उद्येश्य से हो या  वास्तव में भारत के जनता की भूखमिटाने की इच्छा से हो , अभी वह बधाई के पात्र नहीं बनी.। अभी तक केवल वह दो ही सीढ़ी  ही चढ़ पायी है.। पहला बिल का ड्राफ्ट बनवाना ,दूसरा संसद से पास करवाना और राष्ट्रपति से मंजूर करवा कर कानूनी रूप  देना। तीसरी सीढ़ी पार करना बहुत कठिन है.। वह है वितरण प्रणाली में मौजूद लीकेज को बंद करना और चौथी सीढी  है यह सुनिश्चित करना कि यदि एक व्यक्ति के लिए १० रुपये मंजूर  हुआ है   तो उसको १० रूपया ही मिले। उस से कम नहीं। वितरण प्रणाली में यदि लीकेज  बंद नहीं किया गया तो यह भी ९०,००० करोड़ के मनरेगा योजना जैसे असफल योजना होगी। तब यह समझा जायेगा कि सोनिया  गाँधी और कांग्रेस पार्टी गरीबों के नाम लेकर लीकेज के माध्यम से अपने चट्टे  बट्टों को लाभ पहुँचाया है.। यही तो होता आया है.। सोनिया गाँधी वास्तव में वधाई के हकदार तभी होगी जब वितरण प्रणाली में मौजूदा लीकेज बंद करवा कर  वास्तविक गरीब को उसका हक़ दिलवा देगी ।  


कालीपद "प्रसाद "