गुरुवार, 22 अगस्त 2013

देश किधर जा रहा है ?

स्वाधीनता के बाद राष्ट्र के निर्माताओं ने भारत के संविधान में यह विकल्प खुला रखा था कि आवश्यकतानुसार देश हित में और अच्छे  साफ़ सुथरा प्रशासन केलिए यदि जरुरत पड़े तो संविधान के धारायों में परिवर्तन किया जा सके या नई धारा जोड़ा जा सके.। परन्तु इस विकल्प का उपयोग अब  दोषी ,अपराधियों को बचाने में किया जा रहा है . जन लोकपाल बिल जो दोषियों  के दण्ड देने के लिए बनना था उसे लटका दिया गया और दोषियों को बचाने का बिल एक दिन में पास हो गया.।न्यायालय के आदेश को निरस्त करने के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है.। चुनाव आयोग,आर टी आई   जैसे संवैधानिक संस्थाओं को पंगु बनाने में किया जारहा है.। क्या यह संविधान द्वारा दिया गया अधिकार का दुरूपयोग नहीं है ? भ्रष्टाचार समाप्त कैसे होगा  जब भ्रष्टाचारियो को सुरक्षा मिलेगा ? सरकार का नियंत्रण न मूल्य वृद्धि पर है न रुपये की मूल्य पर है।  देश सुधरेगा तो कैसे ? देश किधर जा रहा है ?




कालिपद "प्रसाद "

सोमवार, 12 अगस्त 2013

नेता उवाच !!!

 
!!!शहीदों को सलाम !!!



हमारे देश के नेतायों के बारे में जनता यह सोचती है कि वे लोभी हैं , स्वार्थी हैं,   स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते है.। लेकिन देश की रक्षा करते .हुए शहीद हुए वीरों के लिए भी उनके मन में निंदनीय विचार हो सकते हैं ,यह जानकर हर भारतवासी का मन ग्लानी से भर जाता है ,क्षोभ होता है ।  नेताजी कहते है :-


                                                                            नेता उवाच !!!



"सैनिक और पुलिस रक्षक हैं ,सरहद और नेता के 
जनता तो"कैटल "है , हाँका चाहिए हाँकने के लिए.। 

सरहद पर शहीद हुए तो क्या हुआ ?
शैनिक होते हैं शहीद होने के लिए.। 

जिन्दा  थे, पर कष्ट में थे ,कष्ट में थे परिवार भी 
दशलाख और पेन्सन मिला ,परिवार को और क्या चाहिए?"

नेतायों के सोच पर इंसानियत शर्मशार हुआ 
गीदड़ ज्यों शव को नोचता ,शहीद की कुर्बानी बे-आबरू हुआ.। 

सुना है ,चोर डाकुयों ने अपना भेष बदल लिए 
सर पर टोपी ,बदन पर खादी-कुर्ता पहन लिए.। 

शहीदों को हार्दिक श्रद्धांजली !!!
  
हाँका - जानवरों को हांक कर इकट्ठे करने वाला व्यक्ति

कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित


मंगलवार, 6 अगस्त 2013

भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!

               इस आलेख का आधार श्री  पूरण खंडेलवाल जी  द्वारा उठए गए महत्वपूर्ण प्रश्न "भ्रष्टाचार और अपराध पोषित व्यवस्था  को बदलने  का रास्ता आखिर क्या है ?" इसके टिप्पणी संक्षेप में तो दे दिया था परन्तु बात दिमाग में गूंजती रही और अंतत: इसका उत्तर  विस्तृत रूप में यह खुद ही एक आलेख बन गया  है.।
              वास्तव में इस प्रश्न से जुड़े कोई भी व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तर  नहीं देना चाहता है ,राजनेता तो  कतई  नहीं। इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें   लोकतंत्र के प्रमुख आधारों पर विचार करना पड़ेगा।भारतीय संविधान के अनुसार लोकतंत्र के तीन आधार स्तंभ हैं।  वे है संसद (Legislative), कार्यकारिणी/प्रबंधकारिणी (Executive ), और  न्यायलय (Judiciary )। लेकिन आधुनिक समय में एक और जुड़ गया है ,वह है मिडिया। इस प्रकार लोकतंत्र में चार आधार स्तंभ हो गए है।  इन  चार आधार स्तंभ के अलावा जनता को सबसे शक्तिशाली आधार स्तंभ माना गया है.। यह जब चाहे शासन में उलट फेर कर सकती है। सैद्धांतिक रूप से यह सुनने में बहुत अच्छा लगता है परन्तु वास्तविकता से यह कोशों दूर है.। वास्तविकता यह है की भारत में जनतंत्र के नाम पर करीब ५५० परिवारों का राज चल रहा है और बाकी जनता उनका बंधक हैं। भ्रष्टाचार और अपराध को मिटाने के लिए जनता के पास कुछ मौलिक अधिकार होना चाहिए जो उनके पास नहीं है.। वे अधिकार हैं १. यदि उनके चुने हुए प्रतिनिधि  जनता के हित में काम ना करे तो उसे पद से हटाने की क्षमता (right to recall ) होनी चाहिए ,वह अभी नहीं है.।  २. यदि उम्मीदवार का क्रिमीनल रिकॉर्ड है तो उसे रिजेक्ट (right to reject )करने का आप्शन मतपत्र में होने चाहिए ,यह भी अभी नहीं है.। अत: वर्तमान परिस्थिति में जनता व्होट के माध्यम से कोई परिवर्तन नहीं ला सकता। सभी पार्टी के उम्मीदवार  दागी है ,उन्ही में से किसी को वाध्य होकर चुनना पड़ेगा। जनता के पास कोई विकल्प नहीं है.।  जनता लाचार है.।   
           संविधान के निर्मातायों ने दुनियाँ के संविधानों से अच्छी अच्छी बातों को लेकर भारत के संविधान को उदार और आदर्श संविधान बनाने की कोशिश की। उन्होंने सातिर बदमास और संगीन अपराधियों पर नकेल कसने की कोई कोशिश नहीं की.। असल में उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि  कोई अपराधी भी सांसद   बन सकते हैं.।  उदारता  से उन्होंने संविधान में यह प्रावधान रखा है कि २/३ बहुमत से संविधान के किसी भी धारा को बदला या नई धारा जोड़ी जा सकती है.। इसी का फायदा उठाकर , लोकतंत्र के रक्षक न्यायालय ,चुनाव आयोग एवं अन्य संस्थायों द्वारा दिया गया जनहित निर्णयों को संसद में नियम बनाकार निरस्त  किया जाता है और अपराधियों को बचाया जाता है.।  हाल ही में आर टी आई द्वारा फैसला सुनाया है  कि सभी पार्टिया आर टी आई के दायरे में आएगी । इसको निरस्त करने के लिए केबिनेट ने 'पार्टी को आर टी आई से बाहर' रखने का प्रस्ताव पास कर दिया।चूँकि यह सभी पार्टी के हित में है ,इसमें कोई बहस नहीं होगी और सर्वसम्मति से एक दिन में ही पास हो हाने की उम्मीद है.।  सुप्रीम  कोर्ट ने फैसला दिया है कि जिसको दो साल या उससे ज्यादा की सजा हुई है वह चुनाव नहीं लड़ सकता और कोई जेल से चुनाव नहीं लड़ सकता। पार्टियाँ इस फैसले से भी  खुश  नहीं हैं और इसको भी विधेयक द्वारा निरस्त करने की तैयारी चल रही है.। यह संविधान द्वारा दिया गया विशेषाधिकार का दुरूपयोग है जो ना तो जनता के हित में है ना देश के हित में है.। यह अधिकार सिर्फ जनता और देश हित में उपयोग  होना चाहिए था पर यह गुंडे-बदमास ,आर्थिक अपराधियों और बाहुबलियों  को बचाने में किया जा रहा है.।
             जनता "भ्रष्टाचार और आपराधिक " परिस्थिति में परिवर्तन दो ही तरीके से ला सकती है.। पहला वैलेट द्वारा (व्होट द्वारा ),दूसरा है क्रांति द्वारा।व्होट के द्वारा परिवर्तन संभव नहीं हैं ,इसका कारण उपरोक्त  पंक्तियों  में मैंने बताया है.। दूसरा है क्रान्ति। इसमें  भी जल्दी कोई परिवर्तन लाना संभव नहीं दीखता। क्रान्ति के लिए एक ऐसा नेता चाहिए जो सभी दृष्टिकोण से साफ़ सुथरा छबि रखता हो ,साथ में गांधीजी जैसे जनता का हिताकांक्षी हो,जिनके आह्वान पर जनता मर  मिटने के लिए तैयार  हो जाय.। आज भारत  जाति ,धर्म, साम्प्रदायिकता , भाषा आदि में बंटा हुआ है.।  इस  दशा में कोई सर्वमान्य नेता का होना भी मुश्किल लगता है.। इसीलिए क्रान्ति तो दूर दूर तक दिखाई नहीं देती। हाँ नेता विहीन जन-क्रान्ति अगर हो जाय तो यह एक नया इतिहास होगा। फिलहाल जनता मार खाने के मुड  में हैं और नेतायों द्वारा हर तरफ से पिटे जा रहे हैं।
            मिडिया सामाजिक पिलर है.। आज यह पिलर सबसे शक्तिशाली पिलर के रूप में उभरी है.।  जनता की सफलता उसके  कार्य प्रणाली पर निर्भर है.। भ्रष्टाचार के  विरुद्ध श्री अन्ना हजारे के  आन्दोलन को जब मिडिया का  सहयोग मिला, बहुत सफल हुआ परन्तु जब मिडिया ने सपोर्ट  करना बंद कर दिया वह आनोलन अब मृतप्राय है.। इसका कारण यही है की मिडिया भी ईमानदार नहीं है.। अपने स्वार्थ के लिए कभी भी पल्ला बदल लेते हैं.। यही कारण है कि  सचाई की जीत नहीं होती। मिडिया छोटी छोटी बातों को सनसनीखेज बना देती है और कभी कभी बड़ी बड़ी सचाई को दबा देती है.। भ्रष्टाचारी राजनीतिज्ञों और अपराधियों के करतूतों को पहले तो उछालते  हैं फिर अचानक न जाने उनके सुर  क्यों बदल जाते हैं.। या तो वे चुप बैठ जाते हैं या उनके ही कसीदे पड़ने लग जाते हैं.। निष्पक्षता नहीं के बराबर है ,जबकि समाचार प्रसारण में अपनी मत नहीं, वास्तविकता का प्रसारण होना चाहिए। ज्यादातर चेनलों के मालिक व्यावसायी या राजनेता हैं ,इसीलिए ये निष्पक्ष नहीं हो सकते।अपने पैर पर कुल्हाड़ी कैसे मारेंगे ? जनता के हित के पहले उन्हें तो अपना हित देखना है ,इसीलिए जनता  को इनसे भी ज्यादा आशा नहीं रखनी चाहिए।
            अब हम संवैधानिक पिलर की बात करें। उनमें सबसे पहले है   संसद (Legislative)। जनता चुनकर अपना प्रतिनिधि संसद भेजती है इस उम्मीद से कि  वे जनता के हित के लिए ही काम करेंगे, परन्तु पिछले साठ  वर्ष का अनुभव बताता है कि चुनाव जीतने के बाद इनको अपनी फायदा के सिवाय कुछ याद् नहीं रहता है.।पूंजीवादी व्यवस्था में जनता को उतना ही साधन उपलब्ध कराया जाता है  जितना उसको जीवित रहने केलिए आवश्यक है.। हमारे चुने हुए प्रतिनिधि भी यही कर रहे हैं.। खुद सभी सुख सुविधायों का उपभोग कर रहे हैं और जनता को जीवित रखने के लिए दो टुकड़े उनके सामने डाल देते हैं.। प्रजातंत्र के आड़ में पूंजीवाद को चला रहे हैं.। वे केवल अपनी फायदा की बात सोचते हैं.। अभी यदि वे लखपति हैं ,तो करोडपति कैसे बने? करोडपति हैं तो अरबपत कैसे बने ? यही होता है उनका प्रमुख एजेंडा। पूरी सरकारी योजना इस बात को ध्यान में रखकर बनयी जाती है कि  उस से उनको कितना लाभ होने वाला है.। अपने और अपने गुर्गों के फायदा के लिए कोई भी नियम को तोड़ मरोड़ सकते हैं और बिना कोई दंड के इस अपराध से मुक्ति पा लेते हैं.। मौजूदा क़ानून उनके ऊपर नकेल कसने में असमर्थ हैं या असमर्थ बना दिया गया है.। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को प्रभावहीन कर दागी और सजायाप्त नेतायोंको चुनाव लड़ने का अधिकार को पुनर्जीवित  करने के लिए  सभी पार्टियाँ एक मत हो जाएँगे परन्तु जनहित के लिए "जन लोकपाल बिल " या 'महिला आरक्षण बिल' पर कभी एक मत नहीं होंगे। इसीलिए मौजूदा परिस्थिति में चुने हुए प्रतिनिधियों से कुछ अच्छाई या जनता के पक्ष में गुणात्मक सुधर की उम्मीद करना , अपने आपको छलना होगा।
             दूसरा संवैधानिक पिलर है कार्यकारिणी/प्रबंधकारिणी (Executive )। यह संसद की छाया है या यों कहे सांसद और मंत्रियों की छाया है.। जो भी नियम संसद में पारित होता है ,उसका पालन करना /कराना कार्यकारिणी/प्रबंधकारिणी की जिम्मेदारी है.। यह अधिकार मुख्यत: आई ए एस और आई पी  एस अधिकारियों के हाथ में हैं.। इंसान स्वाभाव से लालची होते हैं और यह सच साधू महात्माओं पर भी लागू होता है.।  आई ए एस और आई पी  एस तो  हम आप जैसे साधारण लोग होते हैं.। इनमे भी वे दुर्गुण हैं परंतु  सुप्त अवस्था में रहते है लेकिन संगत से आदत बिगड़ जाती है.। दिनरात वे भ्रष्ट नेतायों के साथ घूमते रहते हैं.। नेता उन्ही से गलत काम करवाते हैं ,क़ानून तुड़वाकर देश की सम्पद लुट रहे हैं,बदले में उन्हें भी कुछ टुकड़े  डाल  देते हैं.। पकडे गए तो बलि का बकरा यही अधिकारी को बनाया जाता है , नेता नहीं ।  इसीलिए इनमे  यह सोच भी आ जाता है कि बलि   का बकरा जब बनना है तो खाकर ही बनो।  यहीं से अधिकारी भी भ्रष्ट हो जाते  हैं.। लेकिन सभी आई ए एस और आई पी  एस अधिकारी इस विचार धारा के पोषक नहीं है.। इसका ज्वलंत उदहारण है दुर्गा शक्ति नागपाल।यह भली भांति जानते हुए कि उत्तर प्रदेश की भ्रष्ट सरकार के मंत्री और अधिकारीयों से पंगा लेना भारी पड़ेगा ,   उसने अपनी इमानदारी पर आंच आने नहीं दी.। कल तक दुर्गा शक्ति नागपाल को कोई नहीं जानता था परन्तु आज उसकी इमानदारी , उसकी सच्ची पहचान बनकर पूरा भारत में फ़ैल गया है.। उसकी इमानदारी और हिम्मत ने भ्रष्टाचारी सरकार की पोल खोल दी.। समाचार के अनुसार आई ए एस असोसिएसन "दुर्गा शक्ति " के सपोर्ट  में चट्टान की तरह खड़ी है.। अगर यह सच है तो उत्तर प्रदेश सरकार उसका बाल भी बांका नहीं कर सकती। आई ए एस अधिकारी चाहें तो एक दिन में ही अखिलेश सरकार को झुका  सकती है.। यही मौका है उन्हें नियानुसार सरकार को नोटिस  देकर असहयोग आन्दोलन करना चाहिए। जनता को असुविधा  जरुर होगी परन्तु लम्बी अवधी में यह जनता के लिये  फायदामंद साबित होगा , इसीलिए यदि आई ए एस अधिकारी असहयोग आन्दोलन करते हैं तो जनता को उनसे सहयोग करना चाहिए। जनता और कार्यकारिणी/प्रबंधकारिणी मिलकर भ्रष्ट नेताओं को आइना दिखा सकते हैं.। कार्यकारिणी/प्रबंधकारिणी को चाहिए कि वह नेताओं के अनैतिक ,गैर कानूनी आदेश का पालन ना करे। हमेशा कानून के दायरे में काम करे और जनता के हित में काम करे.। सरकार तो असल में वही चलाते हैं ,इसीलिए जनता का अभी भी उन भर पूरा भरोसा है.। वे चाहें तो भारत को भ्रषाचार मुक्त बनाने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.। 
             संवैधानिक तीसरा और अंतिम पिलर है न्यायलय (Judiciary )। जब लोग संसद और कार्यकारिणी से निराश हो जाते हैं तो न्यायलय (Judiciary ) के शरण में आते हैं.। लोगो को अभी भी न्यायालय  पर भरोषा है। बिगत दिनों में दिया गया सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय कि, "जिसको दो  साल  या उससे ज्यादा दंड मिला हो वह चुनाव नहीं लड़ सकता और कोई व्यक्ति जेल से चुनाव नहीं लड़ सकता। " जनता का विश्वास को और दृढ़ बनाता है.। परन्तु न्यायाधीश निर्मल यादव के बारे में सुनकर शंका उत्पन्न होती है.। हालाकि सभी न्यायाधीश ऐसे नहीं होते है.। भ्रष्टाचारी न्यायाधीशों की संख्या नगण्य हैं.। इसीलिए जनता न्यायालय के प्रति पूर्ण आस्था रखती है.।  भविष्य में अगर किसी से सबसे ज्यादा उम्मीद है तो वह है न्यायालय, जो जनता की आज़ादी और हित की सही  रक्षक हैं.। उपरोक्त दोनों निर्णय जैसे जनहित निर्णय यदि न्यायालय सुनाते रहे तो संसद कितने निर्णयों को प्रभाव हीन बना पायेंगे ? अगर ऐसा करेंगे तो फिर जनक्रान्ति तो निश्चित है.।  इसीलिए मेरा विचार है कि न्यालालय , कार्यकारिणी और जनता  मिलकर ही भारत की 'भ्रष्टाचार और अपराध पोषित" छबि को बदल सकते हैं.।

नोट : ऊपर बताये गए सभी विचार मेरे व्यक्तिगत विचार हैं ,आप सहमत हो सकते है और नहीं भी। टिप्पणी  में अपना विचार व्यक्त कर सकते हैं.। 


कालीपद  "प्रसाद"