शनिवार, 27 अप्रैल 2013

परम्परा

१  

 पारिवारिक परम्परा 

बुजिर्गों का हथियार 

छोटों पर अत्याचार।

२  

सामाजिक परम्परा 

    नई पीडी मानते हैं 

    डाकियानुसी विचार।

 ३ 

   . पुराना परम्परा 

      है पुराना अचार 

     आज  कोई नहीं  खरीददार।  

४ 

 परम्परा का 

   अन्धानुकरण 

  कुंएं में आत्मविसर्जन। 



   परम्परा का 

      बलात पालन  

       इनकार ताजा हवा का आगौन।

 ६ 

  कोई भी परम्परा 

     पारिवारिक या सामाजिक 

    आज़ादी का हत्यारा।

 ७ 

     छुपा परम्परा 

      धर्म के आड़  में  

         होता है खतरनाक संहारक।

 ८ 

    .परम्परा  

    न टूटने वाला खूंटा 

         समाज है उस से बधां।  

कालीपद "प्रसाद"

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सोमवार, 22 अप्रैल 2013

सजा कैसा हो ?

 

 

 

                       पाँच  साल की बच्ची के साथ जो कुकर्म हुआ है उससे सारा  देश शर्मसार है। सभी में  आक्रोश है,सभी इस कुकृत्य को पाशविक कृत्य से भी  नीचे स्तर का  कार्य बता रहे हैं। चाहे नेता हो  ,अभिनेता हो ,साधारण जनता हो या तथाकथित कानून के रखवाले हों सभी के जबान पर एक ही मांग है कि इस कुकृत्य को करने वाले को फांसी की सजा होना चाहिए क्योंकि मृत्युदंड से बड़ा कोई दंड मनुष्य के हाथ में नहीं है।  मृत्युदंड चाहे फांसी लगाकर दिया जाय या गोली मार कर  या जहर का इंजेक्सन लगाकर या बिजली का झटका देकर या कोई और तरीके से ,मृत्यु  तो मृत्यु है , उसके तरीके से  अपराधी को या समाज को क्या फर्क पड़ता है ? अपराधी के मृत्यु के बाद जनता शांत हो जायगी ,सरकार आराम की नींद सो जायगी ,कानून के रक्षक अपने मूंछों पर तेल लगाते रहेंगे  और दूसरी बालात्कार का इन्तेजार करते रहेंगे। यही आजतक होता आया है यही होता रहेगा।

       दू:ख की इस घडी में यह देखकर अचरज होता है कि कानून बनाने वाले और कानून के रखवाले भी उन दरिंदों के लिए मौत की मांग कर रहे है ,जबकि कानून बनाने वाले को अच्छी तरह पता है कि उनने कानून ऐसा नहीं बनाए हैं जिसमे अपराधी को मृत्यु और केवल मृत्यु दंड मिल सके।कानून के रक्षक को भी पता है कि उनने जो रिपोर्ट सौपी है ,उसमे जो धाराएँ लगाये हैं उसमे मृत्युदंड नहीं मिल सकता , फिर भी जनता को भ्रमित करने के लिए मृत्युदंड की मांग करेंगे। यह दोगलापन नहीं तो और क्या है?

         संसद के बाहर सड़क पर जनता चिल्लाती तब हमारे जन नेतायों को भी जोश आता है। वे संसद के भीतर चिल्लाना शुरू कर देते है। कोई अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा की मांग करते है तो कोई फांसी की।कुछ अपनी पुरानी  कुकृत्य को सोचकर उदारवादी का चोंगा पहन लेते हैं और अपने आवारा लाडलों को ध्यान में रख कर सभ्यता की दुहाई देकर सजा कम कराने की मांग करते हैं। उन्हें डर लगा रहता है कहीं कड़े कानून के पंजे में उनके लाडले ना आ जाए। वे कठोर सजा को बर्बरता, असभ्य समाज का हथियार  मानते हैं। उनसे कोई पूछे कि ढीले ढाले,दन्त बिहीन कानून बनाकर उन दरिंदो को बलात्कार करने का मौक़ा या छुट देना क्या  सभ्य समाज का  कृत्य है? जो शक्त कानून है उनका उचित पालन न कर अपराधी को छुट देना क्या सभ्य समाज का कार्य है ? सभ्य समाज वही है जिस में हर नागरिक बिना किसी भय के विचरण कर सके , जहाँ बच्चे, बूढ़े, बनिता (नारी) निर्भय होकर रह सके। जहाँ कानून का पालन करने वाले का सर ऊँचा रहे और कानुन के अपराधी का सर नीचे। इस प्रकार के समाज बनाने के लिए , अपराधी को  दंड देने के लिए एवं लोगो में कुकृत्य के प्रति घृणा  और भय उत्पन्न करने के लिए यदि बर्बर कानुन का भी सहारा लेना पड़े तो वह भी बुरा नहीं है। यहाँ तो उलटी गंगा बह रही है।  कानून तो है परन्तु कानून  के पालन करने वाले डर से त्रस्त  है और आवांरा सांड जिसको चाहे उसको सिंग मार रहे हैं और उसे रोकने वाले के जबान पर एक ही बात है "इनको बक्सा नहीं जायगा".

            कानून तो जैसे तैसे बनगया परन्तु हर मामला अदालतों का चक्कर काटते काटते दम तोड़ देता है। अदालतों के  तौर तरीके में सुधार   होना चाहिए। पुलिस को रिपोट फाइल करने का  एक समय सीमा होना चाहिए।जान बुझकर देर करने वाले कर्मचारी पर कार्यवाही होनी चाहिए। अदालती कार्य का भी समय सीमा होना  चाहिए।" जस्टिस डिलेड जस्टिस डिनैद Justice delayed , justice denied   "  अदालत को यह ध्यान रखना पड़ेगा।  वैसे दामिनी और गुडिया  के अपराधी पर मुकदमा चलाना तो कानून का और सत्य का तौहीन करना है।मुकदमा तो उन स्थिति में चलना चाहिए जहाँ संदेह हो। दामिनी  और गुडिया के मामले में तो प्रत्यक्ष  प्रमाणित है।इन्हें तो लोगो के हवाले कर देना चाहिए। बचपन में हमने कहानियों में पढ़ा है कि सुल्तानों ,नवाबों  और राजाओं के जमाने में साधारण से साधारण अपराधों की सजा सरे आम दिया जाता था। कहीं फांसी पर लटका कर और कहीं पर अपराधी को जनता के हवाले कर दिया जाता था।जनता पत्थर मार मार कर उसे मार डालते थे।यह दृश्य देखकर लोगो में भय उत्पन्न हो जाता था और गलत काम करने में डरते थे। आज की परिस्थिति में जहाँ अपराधियों में कानून का डर समाप्त हो चुका है ,यह जरुरी हो गया है की दामिनी और गुडिया के अपराधियों को सरे आम खम्भे  से बाध  दिया जाय और जनता को न्याय करने दिया जाय। अपराध करने वाले खुद अपनी आँखों से देखे की सजा क्या   होता है ?मौत क्या होती है? इस से अन्य अपराधियों में डर पैदा होगा। इस से अपराध ख़त्म तो नहीं होगा परन्तु कम जरुर हो जायगा। मुझे लोग अतार्किक और अनैतिक कह सकते  हैं परन्तु तर्क संगत विधि और नैतिकता से तो समाज की स्थिति बद से बदतर हो रहा है। इसलिए समाज  को और नीचे गिरने से बचाने के लिए यह कडवी घूंट तो पीनी ही पड़ेगी।   

 

 

कालीपद" प्रसाद "     

               

    

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

कुत्ते की पूंछ

               "कुत्ते की पूंछ टेढ़ी  के टेढ़ी है। " इस कहावत  के पीछे की कहानी तो  सबको पता है। क्या यह कहावत  पूरी  तरह हमारे देश के प्रशासन, विशेष कर पुलिश प्रशासन पर लागु  होती  दिखाई नहीं दे रही  है ? किसी भी विषय पर ठाणे में रिपोर्ट लिखाने जाओ तो पुलिश रिपोट लिखने में आनाकानी करता है। कोई ना कोई बहाना बनाकर टाल  देता है। जब तक मीडिया या कोई प्रभावशाली व्यक्ति का हस्तक्षेप ना हो  रिपोर्ट नहीं लिखा जाता।    दामिनी केस के बाद जब नया कानून आया तो उम्मीद जगी --चलो अब पुलिस  वाले सुधर जायेंगे। अब जल्दी रिपोर्ट लिखेंगे। कार्यवाही जल्दी होगी। परन्तु पुलिश वाले ठहरे 'कुत्ते की पुंछ' ,सीधे कैसे हो जाते ? तभी तो ५ साल की मासूम बच्ची का  केस ना दर्ज किया, ना उसको खोजने की चेष्टा की। इसके पीछे की मानसिकता यही हो सकती है कि ऍफ़ आर आई दर्ज होगा तो काम करना पड़ेगा। इसलिए जबतक कोई व्ही ,आई , पी  का  केस न हो या फिर मीडिया का हस्तक्षेप ना हो, कोई ऍफ़ आर आई  दर्ज मत करो। पुलिश वालों एवं राज नेतायों के व्यव्हार से तो ऐसा ही लगता है।अन्यथा जो पुलिश वाले ऍफ़ आर आइ दर्ज करने में इनकार करता है उसे नौकरी से  क्यों ना हटा दिया जाता ?   क्या  पुलिश में ऊपर से नीचे तक सबकी समझदारी और सोच एक सी है ?  पुलिश को आपने व्यवहार से जनता में विश्वास पैदा करना पढ़ेगा और साबित  करना पड़ेगा कि पुलिश महकमा "कुत्ते की पूंछ "नहीं वरन यह एक संवेदनशील विभाग है जो समाज के दिल के धड़कन के साथ उसके भी दिल धड़कता है। 
       जनता के दबाव में आकर सरकार ने वलात्कार विरोधी कानून तो बना दिया पर उसका पालन कहाँ हो रहा है ? इस कानून को लागू करने वाले अधिकारी,कर्मचारी और पुलिश अगर निष्पक्ष  होकर इसको लागू नहीं  करेंगे  तो यह भी अन्य कानूनों की भांति फाइलों में दब कर रह जाएगी।  बलात्कार जैसे अभी हो रही है वैसे ही होती रहेगी ,थमेगी नहीं।  यह समाचार यदि सच है कि -"पुलिश वालों ने पैसे देकर गुडिया के माता-पिता को मुहँ  बंध रखने केलिए कहा है ,मीडिया में  ना जाने केलिए कहा है।" तो यह शर्म की बात है कि पुलिश वाले अपनी असफलता को छुपाने के लिए खुद गलत रास्ते अपना रहे है।
        हम अपने गौरवशाली इतहास का ढोल बजाते  रहते है .हमारे पूर्वज ऐसे थे  ,वैसे थे।  इस ढोल को पिटते पिटते हमने उसका चिथड़ा निकाल दिया है।अब ढोल का आर पार दिखाई देने लगा है।कहते है "बाप का बेटा ,सिपाई का घोड़ा ,बहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा " परन्तु  यहाँ तो उलटी गंगा बह रही है। अब हम भारत वासियों के कारण हमारे पूर्वजों को शर्मिंदा होना पड़ रहा है। यदि कहीं से वे हमें देख रहे है तो जरुर कहते होंगे "ये हमारे संतान नहीं हैं। "  इसकेलिए कौन जिम्मेदार है ? राजनेता , सरकारी कर्मचारी जिसमे पुलिश भी है  या जनता ?



कालीपद "प्रसाद"..

  

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

वासन्ती दुर्गा पूजा

                                                          

 
                                                              या देवी सर्व भूतेषु  शक्ति रूपेण संस्थिता ।
                                                              नमस्तसै नमस्तसै  नमस्तसै नमो  नम :। ।



                 आज से नव रात्रि का त्यौहार शुरू हो रहा है अर्थात दुर्गा पूजा शुरू हो रहा  है। जी हाँ इसे वासन्ती  दुर्गा पूजा या कहीं कहीं वासन्ती  पूजा भी कहते हैं क्योकि यह पूजा वसंत ऋतू में  किया जाता है। कहते हैं कि देवतावों ने पहली बार इसी समय महिषासुर वध  के लिए माँ दुर्गा का  आह्वान किया था और सब देवता ने अपने अपने अस्त्र -शत्र से सुसज्जित कर उनकी पूजा की और महिषासुर वध के लिए प्रार्थना की।   आदि काल से माँ की पूजा इसी समय  होती  आई है। परन्तु रावण  पर विजय पाने के लिए श्रीराम चन्द्र जी ने वर्षा ऋतू के बाद  माँ की पूजा आश्विन महीने किया था ,तब से माँ दुर्गा की पूजा आश्विन महीने में होते आया है।
माँ के पूजा/प्रार्थना  में प्रयुक्त होने वाले कुछ विशिष्ट मंत्र  से भक्त गण माँ से प्रार्थना कर सकते हैं।

सर्व मंगल मंगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रम्बके गौरी   नारायणि नम:स्तुते।।
     
शरणागत दीनार्त  परित्राण परायणे।
सर्वस्यार्तिहरे  देवि  नारायणी नमो:स्तुते।।         

सर्वस्वरूपे   सर्वेशे   सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो  देवि  दुर्गे देवि   नमो:स्तुते।।

जयन्ती  मंगला  काली   भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा  धात्री स्वाहा स्वधा नमो:स्तुते।।        


दुर्गे स्मृता हरसि भीतिम शेष जन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:ख भय हारिणि  का त्वदन्या
सर्वोपकार करणाय सदाद्राचित्ता।।

सर्वभूता   यदा  देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तय: ।।

सर्वबाधाप्रशमनं     त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव   त्वया   कार्यमस्मद्वैरीविनाशनं।।    

माँ का वरदान।

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो        धनधान्यसुतान्वित:  ।
मनुष्यों     मत्प्रसादेन    भविष्यति   न  संशय:  ।।

क्षमा प्रार्थना।

अपराध सहस्राणि क्रियन्ते अहर्निशं   मया।
दास: अयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरी।।   


संकलन :
कालीपद "प्रसाद "