गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

मोहन कुछ तो बोलो!

चुप क्यों हो प्यारे मोहन !

किसने हर लिया तुम्हारा मन ?

गोपियों के साथ हँसते थे,  खेलते थे 

गोपों के साथ क्यों हो गए मौन ?

द्वारका छोड़ तुम इन्द्रप्रस्थ आये 

सभा में गोप ही गोप हैं ,गोपियाँ है कम ?

कुछ तो हैं गोपियाँ, 

फिर दुखी क्यों तुम्हारा मन ?

चुप मत रहो कुछ तो बोलो ,हे मोहन मुरारी 

जनता जानना चाहती है ,तुम्हारे मन की बेकरारी।

कुछ नहीं बोलना, तो मत बोलो 

सुना दो मुरली की कुछ धुन ,

नाचेंगे गौ-प्रजा तुम्हारे 

सुनकर मन-मोहन बांसुरी धुन।

बिना धुन के नाच रहे है 

बिगड़ रहा है ताल ,

इधर उधर भाग रहे है 

सब हैं बेलगाम।

 

कोई ताबूत ले भाग रहा है,

कोई गाय का चारा खा रहा है ,

कोई चापर ,कोई एयर बस उड़ा  रहा है ,

कोयला से कोई मुहँ काला कर बैठा है ,

दूर संचार तार से कोई फांसी लगाया है 

मेरिन में डूबकर  चुपके कोई मलाई खा रहा  है ,

इसपर भी सब अपने को 

"आदर्श " निर्दोष नेता बता  रहें हैं ,

ये सब क्या हो रहा है ?

तुम तो कुछ बोलो ,कुछ तो राज खोलो। 


तुम गुमसुम ऐसे बैठे हो 

जैसे राधा से हो गया अनबन ,

गोपियाँ सब आ  गयी सड़क पर 

  ( राधा के समर्थन में),

छोड़कर मथुरा वृन्दावन।  

जो भी कारण हो ........

तुम चतुर हो ,सब जानते हो 

पर उपाय  क्यों नहीं निकल लेते हो ?

मेरी बात मानो 

कुछ गोपों को तुम सभा से बाहर करो 

प्रगति पथ के काँटे जितने 

सबको साफ़ करो।

माता यशोदा को नाराज मत करो 

उनकी अमुल्य सलाह लो  

वही बताएगी मुक्ति पथ 

बेशक थोडा धीरज धरो ,

पर कुछ तूम तो बोलो। 

 

 

कालीपद "प्रसाद "
©सर्वाधिकार सुरक्षित

 

घपले ,व्यंग 


गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

कुम्भ मेला








चित्र गूगल से साभार 


कुम्भ मेला भारत भूमि पर

होता है केवल चार स्थान पर

उज्जैन. नासिक ,प्रयाग और हरिद्वार.

देव दैत्य मिलकरकिया समुद्र मंथन ,

एक के बाद एक ,  ग्यारह रत्न निकले,

पर नहीं थमा मंथन।

बारह रत्न  अमृत कलश देख

देव न कर पाए लोभ सम्बरण,

लेकर कुम्भ मोहिनी भागी, सह देवगण

रण छोड़ ,पीछे पीछे भागे दैत्यगण।

छलक गया अमृत कलश सेबूंद गिरे

 हरिद्वार, प्रयाग ,नासिक और उज्जैन।


सत्य युग की कहानी है यह 

 त्रेता गया , द्वापर गया, कलियुग है यह"

अभी भी पड़ा है अमृत बूंद  वहाँ

"विश्वाश है ? या आस्था है यह ?

"आस्था "पोषण करते पण्डे ,पुजारी

इनसे प्रभावित है ,भारत के नर नारी।

दिल में लेकर मोक्ष की लालसा,

या अमृत से  पाने  अमरता ,

दौड़कर आते कुम्भमेला में

छोड़ संसार की सारी जिम्मेदारी।

करते है गंगा ,गोदावरी , क्षिप्रा

और संगम  में स्नान

,धूलकर पाप ,पाने स्वर्ग में स्थान।

साही स्नान से कटते पाप ,

तरते हैं सारा खानदान ,

ऐसा  ही कहते है पण्डे पुजारी

लेकर सहारा वेद  पुराण।

स्वर्ग नरक हैं कल्पना लोक

कहाँ है? नहीं पता किसी को,

किन्तु स्वर्ग पाने की जोखिम में

खो देते है प्राण ,छुट जाता है यह लोक।


धर्म के धंधेबाजों ने

बिछाया ऐसा जाल ,

पढ़े लिखे ज्ञानी भी

नहीं समझ पाते उनकी छल।

पानी चाहे कितना  गन्दा हो

स्वर्ग पाने की भी जहाँ

प्रबल लालसा हो ,

गन्दा पानी में दुबकी से भी पाप धुलता  है ,

पण्डे पुजारी भक्तों को

ऐसा ही विश्वाश दिलाते है।


अनहोनी होती है हर कुम्भमेला में

कईयों की जान जाती है अपघात में

धर्म के ठेकेदार कहते है --

"पाप कट गया ,मोक्ष मिल  गया

आकर कुम्भ  मेले में,"

कोई जरा उनसे पूछे ...

"तुम ऐसे कैसे कह सकते हो ,

क्या तुम  यमराज के निजी सचिव हो ?

सब के पाप पुन्य का हिसाब रखते हो ?"


ना वह यमराज को जानता है

ना वह उसका सचिव है

पर आपको स्वर्ग में भेजने  का

पूरा दावा करता है।


मृयु के बाद क्या होता है

कोई नहीं यह राज जानता,

पण्डे पुजारी के धंधे के राज

हम इंसान की यही अज्ञानता।




कालीपद "प्रसाद "
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शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

प्रेम,विरह,ईर्षा

1.                                         प्रेम 
                                     संक्रामक है 
                                 बिना जीवाणु के।

2.                                       प्रेम 
                                 सच्चा है ,पक्का है 
                               रंग  धीरे धीरे चढ़ता  है।

3                                     प्रेमोन्माद 
                                    जल्दी चढ़ता है  
                             कच्चा है ,जल्दी उतरता है।

4                                    प्रेम,बुखार है  
                               चढ़ता है,कभी उतरता है 
                            कभी  नफरत ,कभी  परहेज है।

5                                            प्रेम ,
                                         पागलपन है 
                               रिश्ते तोड़ता है,नया बनाता है  

6                                       प्रेम, अँधा है  
                                  ना जात-पात ,ऊंच-नीच 
                                    ना उम्र का बंधन है।

7                                      विरह की अग्नि 
                                        दूर से जलती है 
                                      पास आकर बुझती है।

8                                               ईर्षा 
                                          दुसरे की खूशी 
                                          अपनी बर्बादी। 



कालीपद "प्रसाद "
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मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

चाल ,चलन, चरित्र (दूसरा भाग )

              पिछले  अंक में आप ने देखा महर्षि याज्ञवल्क के तीन शिष्यों ने एक ही उपदेश " द " का तीन अलग अलग अर्थ कैसे निकाला था। उन्होंने जो अर्थ निकाले  उसमे किताबी ज्ञान नहीं था ,वरन उनके पारिवारिक एवं सामाजिक शिक्षा के आधार पर निकाला  था। आज देखिये हमारे नेता ,मंत्री ,संत्री ,अफसर "द "का अर्थ क्या क्या निकालते  हैं।
             हमारे नेता ,मंत्री ,संत्री ,अफसर अच्छी  तरह जानते है कि प्रजातंत्र में अकेला कोई किसी बात का अर्थ निकालेंगे तो उसका कुछ  फ़ायदा नहीं होगा। इसलिए सब मिल बैठ कर , विचार विमर्श कर अर्थ निकालो और उसको सबलोग मानो या फिर नेता जी जो कुछ कहे , चाहे  वह गलत हो, फिर भी सब लोग बोलो, वही  सही है। तभी  उसका फ़ायदा उठा सकते है।इसलिए मंत्री ,संत्री आदि सभी "द " का सर्व मान्य अर्थ निकाल  लिया है।इनके लिए " द " का तीन अर्थ वही हैं  परन्तु अलग2 सदर्भ में।

             देवता स्वाभाव से भोग विलासी  है। धरती पर मंत्री,संत्री ,अफसर  भी भोग विलासी  के आदि हो चुके है।सरकारी माल दोनों हाथ से उड़ा रहे हैं। राजकोष को अपनी बपौती समझकर उसका मलाई का स्वाद केवल वही लेना चाहते है। अपना हक़ समझते हैं। जनता का कोई हक़ नहीं। भोग-विलास   उन्होंने अपना जन्म सिद्ध अधिकार मान लिया है। इसपर यदि कोई आपत्ति करे या अंगुली उठाय तो वे उनका दमन करने में कोई क़सर  नहीं छोड़ते। "द " का अर्थ यहाँ खुद के इन्द्रियों का दमन नहीं, वल्कि "द " का अर्थ विरोधियों को दमन करना।
बीते दिनों में हमने बाबा राम देव का  कालाधन विरोधी आन्दोलन को देखा , अन्ना  हजारे जी का  भ्रष्टाचार  विरोधी आन्दोलन सबने  देखा। इन आन्दोलनो  को दमन करने के लिए सरकार ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी।
इसलिए  नेता ,मंत्री ,संत्री , अफसर ने  "द " का अर्थ यहाँ खुद के इन्द्रियों का दमन नहीं, वल्कि "द " का अर्थ विरोधियों को दमन करना सिखा।
           चुनाव के समय सभी नेता विनम्र भिखारी बन जाते है। दान देने के लिए नहीं दान लेने के लिए। हर उद्योगपति के पास कटोरी लेके पहुँच जाते हैं, दान मांगने के लिए। "माई बाप कटोरी में कुछ डाल दो चुनाव केलिए।" दूसरा कटोरी लेके पहुँचते हैं जनता के पास। एक नेता  हाथ जोड कर खड़ा रहता है  औरदूसरा  चिल्लाता   है 'दे दो, व्होट दे दो, माई बाप व्होट दे दो ,  राम के नाम से दे दो , रहीम के नाम से दे दो ...........। "  नेता दान करना नहीं सीखा , दान लेना सीखा   है। भिखरियों से भी हाथ जोड़ कर कहेंगे " व्होट दे दो ना, हम तुम्हारी  झोपड़ी बनवा देंगे   ।"
           जनता से व्होट का दान लेने के बाद दूसरा  दान लेने के लिए तैयार हो जाते हैं। दूसरा दान ठेकेदारों से, खदान के मालिकों  से ,एजेंटों से। सरकारी संपत्ति को सस्ते में अपने रिश्तेदारों को ,दोस्तों को देकर उनसे    मोटी   रकम का दान लेते  है ( जनता गलती से इसे रिश्वत समझ  लेते है)।सरकारी खरीददारी में कमीसन  लेना , कोयला खदान घपला  , कॉमन वेल्थ गेम्स (c w g ) घपला, इसी का अंग है।
                नेता ,मंत्री ,संत्री , अफसर ने  "द " का अर्थ देना नहीं दान लेना सीखा है।  

मंत्री ,संत्री,नेता,  किसी के दिल  में जनता के प्रति दया नहीं है। सब क्रूर ,निर्दयी , स्वार्थी  है। पर ये चाहते है, जनता इन पर दया करे। चुनाव के समय  व्होट तो मांगते ही  हैं , साथ में यह कहना नहीं भूलते कि  उनकी पुरानी  गलतियों को  माफ़ करे और एक बार फिर उनको व्होट देने की कृपा  करे। जनता को दया आ जाती है और उनको व्होट दे देती है। जनता उनकी  चाल ,चलन, चरित्र  नहीं देखती। देखती है केवल यह कि  वह उसकी जात का है और व्होट दे देतीहै। .यहीं   भारतीय  समाज मात खा जाती है और नेता नकली  आंसू बहाकर जनता का  सहानुभूति  प्राप्त करने में कामयाब हो जाता है।

नेता ,मंत्री ,संत्री , अफसर ने  "द " का अर्थ " दया करो "नहीं   सीखा , सीखा है दया प्राप्त करो। 


              आज देश में  चाल, चलन, चरित्र  का दम्भ  भरने वाले लोग खुद अपनी चरित्र की  पाक साफ़ की दावा नहीं कर सकते , चाहे कितनी ऊँची आवाज में कहे,चाहे कितनी बार कहे कि  उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया ,उनकी आत्मा की कम्पन उनकी आवाज में सुनाई देती है।फिर ख-खर कर गला साफ करने लग जाते है।
            एक दो को छोड़ कर ऐसा कोई नहीं है जिन्होंने अपनी वाजिब प्राप्त वेतन भत्ता के अलावा धोखेधडी से सरकारी खजाना को लुटा ना हो।  सस्ते में ठेका(कोयला )   दे कर ठेकेदारों से पैसा लिया  है।  सरकारी खरीद दारी में पैसा खाया है (बोफोर केस ), नियुक्ति ,पदोन्नति, स्थानांतर में पैसा खाया (चौटाला केस) , क्या क्या गिनाया जाय ? सरकारी कामों में एक आदमी नहीं होता है।यहाँ एक दल होता है। दल  के सभी सदस्य भ्रष्टाचार में लिप्त  होते हैं, इसलिए सभी को दोषी माना जाना चाहिए। CWG  के सभी पदाधिकारियों के विरुद्ध केस चलना चाहिए। दामिनी केस में जैसे सब लोग एक जुट  होकर सरकार पर दबाव बनाया और सरकार को बलात्कार के विरुद्ध अध्यादेश लाना पड़ा वैसे ही जनता को ही आगे आकर इन नेतायों को दमन ,दान, दया का सही अर्थ  समझाना पड़ेगा ,तभी ये सुधरेंगे। तभी देश तेजी से आगे बढेगा।


कालिपद  "प्रसाद"